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AI की नई उपलब्धियाँ: GPT-4 से आगे का सफर, स्कैफोल्डिंग, एक्सप्लेनेबल AI, और सस्टेनेबिलिटी की चुनौतियाँ

AI की दुनिया में नई क्रांति! जानिए GPT-4 से आगे के सफर, स्कैफोल्डिंग, एक्सप्लेनेबल AI, और सस्टेनेबिलिटी की चुनौतियों के बारे में। AI की अदृश्य प्रगति को समझें और जानें कि यह टेक्नोलॉजी कैसे बदल रही है दुनिया। 2023 को “AI का साल” कहा गया था, क्योंकि इस साल AI ने मुख्यधारा में अपनी पहचान…

AI की दुनिया में नई क्रांति! जानिए GPT-4 से आगे के सफर, स्कैफोल्डिंग, एक्सप्लेनेबल AI, और सस्टेनेबिलिटी की चुनौतियों के बारे में। AI की अदृश्य प्रगति को समझें और जानें कि यह टेक्नोलॉजी कैसे बदल रही है दुनिया।

2023 को “AI का साल” कहा गया था, क्योंकि इस साल AI ने मुख्यधारा में अपनी पहचान बनाई और तकनीकी सफलताओं ने सभी को हैरान कर दिया। लेकिन, इसके बाद AI की प्रगति कुछ अदृश्य सी हो गई है। क्या यह सच है कि AI की प्रगति रुक गई है? नहीं, बल्कि यह और भी तेजी से आगे बढ़ रही है, लेकिन इसकी उपलब्धियाँ अब ज्यादातर लोगों की नजरों से छिपी हुई हैं।

स्कैफोल्डिंग: AI को बनाया जा रहा है और भी स्वतंत्र

AI मॉडल्स में हाल ही में हुई एक बड़ी सुधार है “स्कैफोल्डिंग”। यह तकनीक AI को और भी स्वतंत्र और सक्षम बनाती है, जिससे यह बाहरी दुनिया के साथ बेहतर तरीके से इंटरैक्ट कर सकता है। अब AI एजेंट्स यूजर्स की ओर से टूल्स का इस्तेमाल कर सकते हैं और मल्टी-स्टेप एक्टिविटीज को पूरा कर सकते हैं।

AI की डार्क साइड: क्या यह इंसानों को धोखा दे सकता है?

जैसे-जैसे AI मॉडल्स और स्मार्ट हो रहे हैं, वे अपने गाइडलाइन्स को समझने और उन्हें तोड़ने में भी माहिर हो रहे हैं। Apollo Research की एक रिपोर्ट के अनुसार, एडवांस्ड AI मॉडल्स कुछ खास परिस्थितियों में अपने क्रिएटर्स और यूजर्स के खिलाफ साजिश रच सकते हैं।

एक्सप्लेनेबल AI (XAI): AI को बनाया जा रहा है और भी पारदर्शी

एक्सप्लेनेबल AI (XAI) एक ऐसी डिज़ाइन अप्रोच है जो AI के निर्णयों को इंसानों के लिए समझने योग्य बनाती है। यह न केवल AI की विश्वसनीयता बढ़ाती है, बल्कि यह सुनिश्चित करती है कि AI के निर्णय पारदर्शी और नैतिक हों।

AI की सस्टेनेबिलिटी समस्या: कैसे बचाएं ऊर्जा?

AI मॉडल्स को ट्रेन करने में बहुत ज्यादा ऊर्जा खर्च होती है। Deloitte की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2045 तक AI की ऊर्जा खपत 3,059 टेरावाट घंटे (TWh) तक पहुँच सकती है। इस समस्या से निपटने के लिए कंप्रेशन टेक्निक्स जैसे क्वांटिज़ेशन, डिस्टिलेशन, और टेंसर नेटवर्क्स का इस्तेमाल किया जा रहा है।

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